भारत-चीन सीमा पर गश्त की नई व्यवस्था से गश तो नहीं खाएगा अमेरिका? ब्रिक्स समिट से पहले बड़ी बात हो गई

नई दिल्ली: हमेशा से सुनते आए हैं- बड़े लोगों की बात ही कुछ और होती है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में बड़े लोगों का जमावड़ा हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन का ह

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नई दिल्ली: हमेशा से सुनते आए हैं- बड़े लोगों की बात ही कुछ और होती है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में बड़े लोगों का जमावड़ा हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन का हिस्सा होंगे। बड़े लोगों की इस मुलाकात से पहले 'कुछ मीठा हो जाए' जैसी खबर आ गई है। भारत के विदेश सचिव विवेक मिसरी ने बताया है कि भारत और चीन अपनी सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की साझी पेट्रोलिंग पर सहमत हो गए हैं। 2020 से ही जारी विवाद पर यह घोषणा वाकई बड़ा डेवलपमेंट है। इससे यह उम्मीद थोड़ी पक्की होती दिख रही है कि रूस के कजान शहर में मोदी-जिनपिंग की मुलाकात सम्मेलन के इतर भी हो सकती है। सवाल है कि अमेरिका इसे किस नजरिए से देखेगा?

ब्रिक्स सम्मेलन से पहले भारत-चीन के बीच बड़ी पहल

इसमें कोई संदेह नहीं कि एलएसी पर गश्त को लेकर समझौते पर पहुंचना एक बड़ी कामयाबी है क्योंकि भारत और चीन के बीच 2020 से शुरू हुआ सीमा विवाद बेहद भयंकर रूप ले चुका है। ताजा समौझते से इससे सीमा पर तैनात सेनाओं की वापसी हो सकती है और तनाव कम हो सकता है। इस समझौते को क्षेत्र में शांति बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने रूस जाने वाले हैं। इस दौरान उनकी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात होने की उम्मीद है। हालांकि, बैठक को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन माना जा रहा है कि दोनों नेता नई व्यवस्था और सीमा विवाद को सुलझाने के अन्य राजनयिक प्रयासों पर चर्चा करेंगे।

2020 से शुरू हुआ सीमा विवाद का भयंकर रूप

भारत-चीन सीमा विवाद मई 2020 में चरम पर पहुंच गया था, जब एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें हुई थीं। जून 2020 में गलवान घाटी में सबसे गंभीर टकराव हुआ था। इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक और 40 से अधिक चीनी सैनिक मारे गए थे या गंभीर रूप से घायल हो गए थे। लद्दाख के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में हुई यह घटना, दशकों में दो परमाणु हथियारों से लैस देशों के बीच सबसे गंभीर सैन्य टकराव थी। तब से, दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।

भारत-चीन के बीच सीमा का अस्पष्ट रेखांकन नहीं है। इस कारण पिछले कुछ वर्षों में कई बार झड़पें हुई हैं, लेकिन 2020 की गलवान झड़प ने दोनों देशों को एक बड़े सैन्य संघर्ष के कगार पर धकेल दिया था। गतिरोध ने न केवल उनके राजनयिक संबंधों को बल्कि आर्थिक संबंधों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसके बाद से भारत ने चीनी निवेशों की जांच कड़ी कर दी है और चीनी फर्मों से जुड़ी कई बड़ी परियोजनाओं को रोक दिया है।

भारत-चीन में चलती रही बातचीत

2020 की झड़प के बाद से माहौल को शांत करने के लिए दोनों देशों के बीच कई दौर की राजनयिक और सैन्य वार्ता हुई है। यह प्रक्रिया धीमी रही है क्योंकि दोनों पक्ष इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, हाल के घटनाक्रम इन वार्ताओं की गतिशीलता में बदलाव का संकेत देते हैं।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अनुसार, बातें रचनात्मक रही हैं और इस कारण 'भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त की व्यवस्था' हुई है। इन पेट्रोलिंग अरेंजमेंट से सैन्य बलों की वापसी और 2020 से चली आ रही कई समस्याओं के समाधान की उम्मीद है। नया समझौता कथित तौर पर देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त से संबंधित है, जो एलएसी के साथ तनाव के दो प्रमुख बिंदु हैं। वार्ता में सीमा पर यथास्थिति को अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में बहाल करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जो भारत की ओर से एक प्रमुख मांग है।

कई अन्य मुद्दों पर रहेगी नजर

प्रगति के बावजूद, अभी भी कई अनसुलझे मुद्दे हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। इससे पहले कि स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो सके, भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि जहां 'आसान' मुद्दों का समाधान हो गया है, वहीं अधिक कठिन परिस्थितियां अभी भी बनी हुई हैं। विशेष रूप से देपसांग के मैदानों और पूर्वी लद्दाख के कुछ हिस्सों में ये अनसुलझे क्षेत्र पूर्ण वापसी के लिए एक चुनौती बने हुए हैं।

विशेष रूप से देपसांग एक विवादास्पद क्षेत्र बना हुआ है जहां माना जाता है कि चीनी सेनाएं भारत के दावा वाले क्षेत्र के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर जमी हुई हैं। सितंबर 2022 में गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से दोनों पक्षों के सैनिक पीछे हट गए थे, देपसांग में गतिरोध को हल करना इसके रणनीतिक महत्व के कारण अधिक चुनौतीपूर्ण रहा है।

समझौता तो ठीक लेकिन सावधानी भी जरूरी

ताजा समझौता एक सकारात्मक कदम तो है, लेकिन इसे जमीन पर लागू करने में काफी सावधानी बरतनी होगी। यह सुनिश्चित करने में दोनों पक्षों के सैन्य कमांडर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कि वापसी सुचारू रूप से हो और तनाव फिर से न भड़के। जनरल द्विवेदी ने इस बात पर जोर दिया है कि राजनयिक संकेत सकारात्मक हैं, लेकिन बहुत कुछ आने वाले हफ्तों और महीनों में सैन्य कमांडरों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों पर निर्भर करता है।

हालिया समझौते के भारत-चीन संबंधों के लिए व्यापक निहितार्थ हैं। 2020 के संघर्ष ने राजनयिक संबंधों को बुरी तरह प्रभावित किया। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर समझौतों का उल्लंघन करने और स्थिति को भड़काने का आरोप लगाया। दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को भी झटका लगा। भारत ने चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए। संघर्ष के बाद चीनी निवेश पर जांच कड़ी कर दी गई और कई चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

भारत-चीन में अब सुलझेंगे कई और मुद्दे?

एलएसी पर शांति और सामान्य स्थिति की बहाली को व्यापक द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक शर्त के रूप में देखा जाता है। भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र की रिपोर्टों के अनुसार, दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि संबंधों को सामान्य करने के लिए एलएसी का सम्मान और शांति की बहाली जरूरी है। तथ्य यह है कि दोनों देशों ने धीमी प्रगति के बावजूद राजनयिक संवाद जारी रखा है, यह एक सकारात्मक संकेत है कि दोनों सीमा विवाद का दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

भारत और चीन दोनों का अपनी साझा सीमा पर स्थिति को स्थिर करने में निहित स्वार्थ है। भारत के लिए एलएसी पर शांति बहाल करने से वह अपने आर्थिक विकास और क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं जैसे अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा। चीन के लिए सीमा विवाद का समाधान उसे एक ऐसे समय में एक प्रमुख पड़ोसी के साथ आगे बढ़ने से बचने में मदद करेगा, जब वह अन्य प्रमुख शक्तियों, विशेष रूप से अमेरिका से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है।

अमेरिका की प्रतिक्रिया पर रहेगी नजर

अमेरिका ने कनाडा में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और अपने यहां आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के आरोपों में भारत को घेरने की लगातार कोशिशें की हैं। अमेरिका ने न केवल निज्जर की हत्या मामले में कनाडा के कंधे पर हाथ रखकर भारत की तरफ आंखें तरेर रहा है बल्कि पन्नू मामले में भारत पर लगातार दबाव बनाना चाह रहा है। ऐसे में उसके घोर प्रतिस्पर्धी चीन के साथ भारत के सबसे बड़े विवाद के सुलझने पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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